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चुनावी मुद्दे

आधी आबादी, पूरी सियासत

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Deepti Chaurasia

देश में आम चुनावों का शोर है। पहले दौर की वोटिगं 19 अप्रैल को है। प्रचार से शोर के बीच सभी दल अपने अपने मैनिफैस्टो जारी कर रहे हैं। इस मैनिफेस्टो में ज्यादातर दलों ने किसान गरीब और युवा के साथ साथ किसी पर फोकस किया है तो वो है आधी आबादी।


कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र जिसे न्याय पत्र का नाम दिया है उसमें आधी आबादी के लिए कई सारे वादे किए है जिनमें हर गरीब परिवार की महिला को हर साल एक लाख रूपए से लेकर आंगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं की सैलरी बढ़ाने के अलावा सरकारी नौकरी में पचास प्रतिशत आरक्षण की भी बात कही है।


वही अगर बीजेपी के संकल्प पत्र की बात करें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन चार स्तंभो की बात की उसमें किसान ,महिला ,युवा और गरीब एक स्तंभ महिला को भी बताया है। प्रधानमंत्री मोदी का मानना है कि इन चार स्तंभो को सशक्त किए बिना देश और समाज के विकास की कल्पना नहीं की जा सकती।


अब सवाल ये कि आखिर क्या कारण है कि इन चुनावों में आधी आबादी पर पूरी सियासत जारी है। चलिए समझने की कोशिश करते हैं।


दरअसल ये पहला आम चुनाव है जो नारी शक्ति वंदन अधिनियम के पारित होने के बाद हो रहा है। हांलाकि नारी शक्ति वंदन अधिनियम परिसीमन के बाद 2026 के चुनावों से प्रभावी होगा। इसको 2026 के परिसीमन के बाद लागू किया जाएगा लेकिन उससे पहले देश को ये बताया जा चुका है कि प्रधानमंत्री मोदी की सरकार आधी आबादी को लेकर कितनी संवेदनशील है।


एक दौर था जब आधी आबादी मतलब कि महिला के वोट को परिवार के पुरूष के वोट से जोड़ कर देखा जाता था। परिवार का पुरूष तय करता था कि पूरे परिवार को वोट किस निशान पर जाएगा। लेकिन इस साल के विधानसभा चुनाव जिन भी राज्यों में हुए एक नया ट्रेंड देखने को मिला कि पूरा का पूरा चुनाव आधी आबादी के ईद गिर्द घूम रहा था। मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़ और राजस्थान तीनों ही हिंदी भाषी राज्यों में आधी आबादी को साधने के लिए अलग अलग योजनाएं लाई गईं, चाहे लाड़ली बहना हो या छत्तीसगढ़ की महतारी योजना चाहे राजस्थान की लाड़ो प्रोत्साहन या गृह लक्ष्मी गारंटी योजना हो।


इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि आधी आबादी अब सच में आधी हो चुकी है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2019 के मुकाबले देश में महिला वोटरों की संख्या तेजी से बढ़ गई है। 2019 में कुल वोटर 89.6 करोड़ थी जिसमें पुरूष मतदाता 46.5 करोड़ और महिला मतदाता 43.1 करोड़ थी। वहीं इस समय 2024 में देश में तकरीबन 97.6 करोड़ मतदाता हैं। जिसमें पुरूष मतदाता 49.7 करोड़ तो महिला मतदाता 47.1 करोड़ पुरूष मतदाता हैं।
मोटे तौर पर देखें तों पुरूष वोटर की संख्या 2019 के मुताबिक 3.2 प्रतिशत बढ़े तो वहीं महिला वोटर की ये संख्या 2019 के मुताबिक चार प्रतिशत तक बढी है।


देश के कई राज्यों में भी महिला मतदाता की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है यही वजह रही कि कई राज्यों सरकारें विधानसभा चुनाव महिला हितग्राहियों के लिए ही बनाई गई फिर चाहे मध्यप्रदेश हो राजस्थान या फिर उत्तरप्रदेश। अगर राजनैतिक भाषा में कहें तो किसान और गरीब की तरह महिला भी अब वोट बैंक हो गई है।


नारी शक्ति वंदन अधिनियम अब महिलाओं कि भागीदारी को लोकसभा और विधानसभाओं में भी सुनिश्चित करेगा। इस अधिनियम से महिलाओं को न केवल सत्ता में भागीदारी मिलेगा बल्कि देश के लिए कानून बनाने में भी उनकी बराबर की हिस्सेदारी होगी। भारत जैसे लोकतांत्रिक देशों में इस बात की भी उम्मीद की जाती है कि महिला प्रतिनिधित्व बढ़ने के बाद हिंदुस्तान की मीडिल क्लास घरों और सड़कों पर संघर्ष करती आधी आबादी की समस्याएं देश की संसद में बेहतर तरीके से रखी जाएंगी!

  • Deepti Chaurasia

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